आत्म दर्शन
दृश्य विहंगम, थी अम्बुद की झीलकर्ण था निहारे, घनघोर नभ नील शीर्ष चट्टान से भी बड़ा , लौह मुद्रा में था खड़ा रूद्र नेत्रस्वरुप, अंधकूप में झांकेविकट मन का भार, अब वो कैसे आंके बाट जोह विवेक में, सुना धर्म का नादहुआ उसे कर्त्तव्य की ,मृत्यु का अवसाद ग्लानि का सांकल करे किंकर्तव्यविमूढ़, था ये […]